***गीत नहीं गाता हूँ***
गीत नहीं गाता हूँ, बेनकाब चेहरे हैं
दाग बड़े गहरे हैं टूटता तिलिस्म
आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ,
गीत नहीं गाता हूँ।।
लगी कुछ ऐसी नजर ,
बिखरा शीशे सा शहर।।
अपनों के मेले में ,
मीत नहीं पाता हूँ।।
गीत नहीं गाता हूँ,
गीत नहीं गाता हूँ।।
पीठ में छुरी सा चाँद,
राहु गया रेखा फांद।।
मुक्त के क्षणों में बार बार बंध जाता हूँ,
गीत नहीं गाता हूँ,
गीत नहीं गाता हूँ।।
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी।।
हार नहीं मानूँगा रार नहीं ठानूँगा
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ गीत नया गाता हूँ।।
मैं आदिपुरुष निर्भयता का
वरदान लिए आया भू पर
पय पीकर सब मरते आए
मैं अमर हुआ लो विष पीकर।।
अधरों की प्यास बुझाई है
मैनें पीकर वो आग प्रखर
हो जाती दुनिया भस्मसात
जिसको पलभर में ही छूकर।।
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने
प्रारंभ किया मेरा पूजन
मैं नर-नारायण-नीलकंठ बन गया न इसमें कुछ संशय
हिन्दू तन-मन हिन्दू जीवन रग-रग हिन्दू मेरा परिचय।।।।
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