रामधारी सिंह दिनकर की प्रेरणादायक कविता 👍🙏
विषय → समर शेष है ।
⭐ ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो । किसने कहा युद्ध की बेला गई, शान्ति से बोलो ?
⭐ किसने कहा और मत बेधो , हृदय वह्नि के शर से, भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से ?
⭐ कुंकुम ? लेपूँ किसे ? सुनाऊँ किसको कोमल गान ? तड़प रहा आंखों के आगे, भूँखा हिन्दुस्तान ।
⭐ फूलों की रंगीन लहर पर, ओ उतरने वाले ! ओ रेशमी नगर के वासी ! ओ छवि के मतवाले !
⭐ सकल देश में हालाहल है, दिल्ली में हाला है , दिल्ली में रौशनी, शेष भारत में अंधियाला है ।
⭐ मखमल के पर्दों के बाहर , फूलों के उस पार , ज्यों का त्यों है खड़ा आज भी, मरघट सा संसार ।
⭐ वह संसार जहां पर पहुंची , अब तक नहीं किरण है , जहां क्षितिज है शून्य , अभी तक अम्बर तिमिर वरण है ।
⭐ देख जहां का दृश्य , आज भी अन्तस्तल हिलता है , मां को लज्जा वसन और, शिशु को न क्षीर मिलता है ।
⭐ पूज रहा है जहाँ चकित हो , जन-जन देख अकाज , सात वर्ष हो गया, राह में अटका कहाँ स्वराज ।
⭐ अटका कहाँ स्वराज ? बोल दिल्ली ! तू क्या कहती है ? तू रानी बन गई , वेदना जनता क्यों सहती है ?
⭐ सबके भाग्य दबा रक्खे हैं, किसने अपने कर में ? उतरी थी जो विभा, हुई वंदिनी, बता किस घर में ?
⭐ समर शेष है, यह प्रकाश बन्दीगृह से घुटेगा, और नही तो तुझ पर पापिन ! महावज्र टूटेगा ।
⭐ समर शेष है, इस स्वराज को सत्य बनाना होगा। जिसका है यह न्यास, उसे सत्वर पहुंचना होगा ।
⭐ धारा के मन में, अनेक पर्वत जो खड़े हुए हैं, गंगा का पथ रोक इंद्र के मज जो अड़े हुए हैं ।
⭐ कह दो उनसे झुके अगर तो, जग में यश पाएंगे। अड़े रहे तो ऐरावत, पत्तों-से बह जाएंगे ।
⭐ समर शेष है, जनगंगा को खुल कर लहराने दो, शिखरों को डूबने और मुकुटों को बह जाने दो ।
⭐ पथरीली ऊंची जमीन है ? तो उसको तोड़ेंगे । समतल पीटे बिना समर की भूमि नहीं छोड़ेंगे ।
⭐ समर शेष है, चलो ज्योतियों के बरसाते तीर, खंड-खंड हो गिरे, विषमता की काली जंजीर ।
⭐ समर शेष है, अभी मनुज -भक्षी हुँकार रहें हैं । गाँधी का पी रुधिर , जवाहर पर फुंकार रहें हैं ।
⭐ समर शेष है अहंकार इनका हरना बाकी है, वृक को दंतहीन अहि को निर्विष करना बाकी है।
⭐ समर शेष है शपथ धर्म की लाना है वह काल विचरें अभय देश में गाँधी और जवाहर लाल ।
⭐ तिमिर पुत्र ये दस्यु , कहीं कोई दुष्कांड रचे न ! सावधान हो खड़ी, देश भर में गाँधी की सेना ।
⭐ बलि देकर भी बली ! स्नेह का यह मृदु व्रत साधो रे, मन्दिर और मस्जिद दोनों पर, एक तार बांधो रे !
⭐ समर शेष है नहीं पाप का भागी कोई व्याघ्र, जो तटस्थ है, समय लिखेगा उनका भी अपराध ।।
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