नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी का संघर्षमय जीवन

हम बात करने वाले हैं एक ऐसे शख्स की जिसके सामने संघर्ष को भी हार माननी पड़ी। ये कहानी है एक ऐसे बंदे की जिसने बाॅलीवुड के नक्शे को ही बदल डाला। नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी  - एक एक्टर बनने के लिए जिन्होंने लगातार 12 साल तक कड़ी मेहनत की। 

नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी का जन्म 19 मई 1974 को उत्तर प्रदेश (भारत) राज्य के पश्चिमी भाग मुजफ्फरनगर जिले के एक छोटे से ‌गाँव तहसील बुधना में हुआ था। इनका जन्म एक जमींदार परिवार में हुआ था। गुरुकुल कंगरी विश्वविद्यालय (हरिद्वार) से उन्होंने विज्ञान में स्नातक की डिग्री ली। वडोदरा में 1 साल रहकर केमिस्ट का काम किए। लेकिन उन्हें इन सब में दिलचस्प ही नहीं था। इन सब कामों में उनका मन नहीं लगता था।

एक बार दिल्ली में उन्होंने एक नाटक देखा और उसके बाद उन्हें पता चला कि मुझे ये करना चाहिए और मैं यही करूँगा। दिल्ली में नवाज अपने एक दोस्त की मदद से थिएटर ग्रुप से जुड़ गए लेकिन वहाँ पर उन्हें पैसे नहीं दिए जाते थे, जिसके कारण नोएडा में उन्हें वाॅचमैन की भी नौकरी करनी पड़ी। नवाज ने कभी भी अपने परिवार वालों से पैसों के मामले में कोई मदद नहीं मांगी। वो दिनभर वाॅचमैन का काम करते और शाम को एक्टिंग का अभ्यास करते थे।

NSD से ग्रेजुएशन करने के बाद नवाज नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में प्रवेश लिए उसके बाद मुंबई चले गए। साल 2004 का समय बहुत ही मुश्किल से बीता क्योंकि वो ऐसा समय था जब नवाज किराया देने में भी बेबस थे, तब उन्होंने NSD के सीनियर से रहने के लिए जगह मांगी तो उनके सीनियर ने गोरेगाँव में मौजूद उनका एक अपार्टमेंट नवाज को रहने के लिए दे दिया और वहाँ पर रहकर नवाज को हर रोज अपने सीनियर के लिए खाना बनाना पड़ता था।

साल 1999 में उन्होंने फिल्म "सरफरोश"में छोटा सा रोल किया जिसमें अभिनेता आमिर खान भी शामिल थे। उसी ‌दौरान उन्होंने "जंगल" फिल्म में मैसेंजर का किरदार निभाया और साल 2003 में बनी फिल्म "मुन्नाभाई एमबीबीएस" में अभिनेता संजय दत्त और सुनील दत्त के साथ काम किए। मुंबई में आने के बाद सिद्दकी ने टीवी पर काम करने को सोचा लेकिन इसमें भी वो असफल रहे। 

2003 के एक छोटी सी फिल्म में नवाज इरफ़ान ख़ान के साथ काम किए। ऐसे ही छोटे छोटे नाटकों में वो काम करते और किसी तरह से अपने जीवन का गुजारा करते थे।

सिद्दीक़ी का कहना था कि क्यूँ न मुझे दस, बीस, तीस चालीस साल लग जाए लेकिन मैं कोशिश करता रहूँगा कुछ भी हो जाए लेकिन मुंबई छोड़ के नहीं जाऊँगा। काफी सालों बाद साल 2007 में बनी फिल्म "ब्लैक फ्राइडे" में जबरदस्त रोल किया। इस फिल्म के निदेशक अनुराग कश्यप थे।

"प्रशांत भार्गव की पतंग" इसमें वेडिंग सिंगर्स चक्कू काला रोल किया और इसी रोल की वजह से इस मूवी को टिब्रेका फिल्म फेस्टिवल और बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल सम्मिलित किया गया।

2009 में फिल्म "देव डी" इमोशनल अत्याचार गाना इसमें भी नवाज ने काम किया था। देखते ही देखते उन्हें प्रसिद्धि मिलने लगी और लोग भी उन्हें पसंद करने लगे। न्यू यॉर्क में भी काम मिला। फिर 2010 में आमिर खान की फिल्म "पीपली लाइव" में भी काम किया।

2012 में तो हर कोई दंग रह गया। यहाँ से नवाजुद्दीन सिद्दीकी को असली सफलता मिली। इस फिल्म के पीछे एक छोटी सी कहानी है - जब उन्हें इस फिल्म के लिए फोन किया गया कि आपको थोड़े समय के लिए काम करना है तो नवाज ने कहा कि शायद गलती से आपने मुझे फोन कर दिया है लेकिन उन्होंने कहा कि नहीं सर मैंने सही जगह फोन किया है आपको एक ऑफिसर का रोल प्ले करना है।

इसके बाद गैंग्स ऑफ वासेपुर अनुराग कश्यप के डायरेक्शन में बनी फिल्म जिसमें नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी ने काम किया। इस फिल्म ने तो आग लगा दी। अब वो सारी प्राब्लम्स दूर हो गई जो नवाज ने 12 साल तक देखे थे।

2013 में उन्होंने हाॅरर मूवी में काम किया

2014 में फिल्म (Kick) में शिवा गजरा के विलन का रोल किया

हरामखोर फिल्म में बेहतरीन काम करने के लिए उन्हें न्यू यॉर्क इंडियन फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट एक्टर अवार्ड से भी नवाजा गया और भी अवार्ड मिले जैसे - 

बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का स्क्रीन अवार्ड

बेस्ट एक्टर का Zee Cine Award

मेल का Zee Cine Award

गैंग्स ऑफ वासेपुर में रोल के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का स्टारडस्ट अवार्ड दिया गया और उनकी फिल्म कहानी, तलाश, गैंग्स ऑफ वासेपुर, देख इंडियन सर्कस के लिए स्पेशल जूरी अवार्ड देकर नवाजा गया था।

नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी एक बात कहते हैं कि - आज मैं जो कुछ भी हूँ वो सब अपने 12-13 साल के संघर्ष के वजह से हूँ अगर आज वो मेरी जिंदगी में न होता तो आज मैं यहाँ न होता।

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