मुग़ल कालीन स्थापत्य कला
प्राचीन कला एवं संस्कृति, जिनका अस्तित्व आज भी कायम है और ये इतिहास का एक अहम हिस्सा है जिसके माध्यम से हम उस विशिष्ट दौर को समझ सकते है तथा उसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते है | सिर्फ जानकारी ही नही कला-कौशल, सभ्यता आदि से हम परिचित होते है | महान शासकों द्वारा बनवाई गई विशाल इमारतें जो सदियों से लोकप्रिय रही है | मध्यकाल का इतिहास कला और संस्कृति को अधिक महत्त्व देता है और इसी काल में अरबों का सिंध पर आक्रमण, दिल्ली सल्तनत और मुग़ल वंश जैसे विशाल साम्राज्यों का आगमन हुआ |
भवन निर्माण शैली मुग़लों की ही देन थी | इनके द्वारा बनाये गये भवन आज भी अस्तित्व में है | मुग़ल स्थापत्य कला की नींव बाबर ने रखी थी और बाद में अकबर, जहाँगीर तथा शाहजहां के शासनकाल में ये व्यवस्था पराकाष्ठा तक पहुँच गई | मुग़ल शासकों ने विभिन्न शैलियों का प्रयोग कर, जिसमें ईरानी शैलियों का भी समावेश किया और परिणामस्वरूप, उगते हुए सूर्य के समान एक नवीन शैली का उदय हुआ | इस शैली को विद्वानों ने मुग़ल स्थापत्य शैली, इंडो-सारसेनिक शैली, और इंडो-पर्शियन शैली की संज्ञा दी है | मुग़ल कला के इतिहास की शुरुआत बाबर से होती है, जो निम्न्वत है :-
बाबर
मुग़ल वंश का संस्थापक बाबर, जो विद्वान होने के साथ-साथ कला से स्नेह करने वाला प्रथम मुग़ल शासक था | बाबर को भारतीय कलाकारों ने अपनी ओर आकर्षित किया और ग्वालियर के मानसिंह और विक्रमाजीत के भवनों से भी बाबर बहुत प्रभावित हुआ | भारतीय कलाकारों के साथ काम करने के लिए बाबर ने अल्बानिया के मशहूर कलाकार सिनान के अनुयायियों को बुलाया | चारबाग पद्धति और पानी की कृत्रिम व्यवस्था ईरानी पद्धति के माध्यम से भारत में प्रयुक्त की गई | बाबर द्वारा निर्मित दो भवन है - पानीपत की काबुली मस्जिद और रूहेलखंड में संभल मस्जिद जिनका निर्माण 1528-1529 ई. में सैनिकों के नमाज पढ़ने के लिए किया गया था |
हुमायूँ
मुग़ल काल के जितने भी शासक थे उन सभी को कला से बेहद प्रेम था | हुमायूँ भी उनमे से एक था लेकिन राजनैतिक जीवन में इतनी व्यस्तता होने के कारण उसे अपनी अभिरुचि व्यक्त करने का अवसर ही नहीं मिला | शेरशाह द्वारा परास्त होने के पश्चात् हुमायूँ को ईरान के शाह तहमास्प के दरबार में शरण लेनी पड़ी थी | इसी के अन्तराल हुमायूँ ईरानी स्थापत्य कला से परिचित हुआ और भारत आने के बाद उसने ईरानी कला पद्धति को स्थापित किया | हुमायूँ की मृत्यु हो जाने के कारण वो इस अवसर से वंचित रह गया | हुमायूँ ने अपने शासनकाल के दौरान कुछ भवनों का निर्माण करवाया था | 1533 ई. में दिल्ली में दीनपनाह (इसे पांचवी दिल्ली भी कहते है) नामक नगर को बसाया और आगरा तथा फतेहाबाद में दो मस्जिदों की स्थापना करवाई | हुमायूँ ने जिस काम को अधूरा छोड़ दिया था वो काम उसके उत्तराधिकारियों ने पूरा किया अर्थात हुमायूँ के सहयोगियों ने ईरानी कला को चर्मोत्कर्ष तक पहुँचाया |
शेरशाह
हुमायूँ को हराकर दिल्ली अपने अधीन करने के बाद शेरशाह ने भी भवनों का निर्माण करवाया | शेरशाह द्वारा निर्मित भवनों में सबसे प्रमुख और लोकप्रिय सासाराम (बिहार) में निर्मित उसका मकबरा है | ये मकबरा एक झील के बीचों-बीच स्थित है जिसके चारों ओर मेहराबदार बरामदे बने हुए हैं तथा गुम्बद के शीर्ष को कम्लाकृति से सजाया गया है | उसने शेरगढ़ या दिल्ली शेरशाही नगर को स्थापित किया, जिसे छठां दिल्ली कहा जाता है | 1542 ई. में दिल्ली के प्राचीन किले के अन्दर उसने किलाए-कुहना नामक एक मस्जिद का निर्माण करवाया | इसमें लोदी वंश के जमाली मस्जिद के जैसे पाँच मेहराब और एक गुम्बद रखी गई है | प्रत्येक मेहराबी द्वार एक बड़े से कक्ष में खुलता है जिन्हें पाँच भागों में विभक्त किया गया है | यहीं पे शेरमंडल नामक इमारत का भी निर्माण करवाया गया है जो एक अष्टभुजी तीन मंजिला मंडप है |
अकबर
स्थापत्य कला के परिपेक्ष से अकबर का काल अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसमें विशेष रूप से अकबर का योगदान रहा है | अकबर के शासनकाल को नवीन प्रयोगों का काल कहते हैं क्योंकि स्थापत्य कला में इसका प्रभाव देखने को मिलता है | अकबर ने विभिन्न शैलियों तथा देश-विदेश की कलाओं का मिश्रण कर एक नई शैली को जन्म दिया | अबुल फजल ने लिखा है - बादशाह अकबर सुन्दर योजनाओं की कल्पना करता है और अपने मस्तिष्क के विचारों को पत्थर पर लिखवाता है, अकबर द्वारा बनवाए गए भवनों में लाल बलुआ पत्थरों का प्रयोग किया गया था | उसने आगरा, दिल्ली, लाहौर, इलाहाबाद तथा फतेहपुर सीकरी में विशाल इमारतों तथा भवनों का निर्माण करवाया था |
दिल्ली में निर्मित भवन
- अकबर के शासनकाल के दौरान दिल्ली में बना एकमात्र हुमायूँ का मकबरा है | इसकी नक्काशी फारसी शिल्पकार मलिक मिर्ज़ा ग्यास द्वारा की गयी थी तथा चारबाग पद्धति का प्रयोग पहली बार हुमायूँ के इसी मकबरे में हुआ था |
- ये मकबरा दोहरी गुम्बद से निर्मित है तथा इसपे ईरानी प्रभाव देखने को मिलता है | इसके गुम्बद संगमरमर से बनाये गये है शेष भागों में सफ़ेद तथा काले संगमरमर का प्रयोग किया गया है |
- हुमायूँ के इस मकबरे को ताजमहल का पूर्वगामी कहा जाता है |
- ये एकमात्र ऐसा मकबरा है जिसमें नौ लोग (बेगाबेगम, हमीदाबानू बेगम, दारा शिकोह, जहांदार शाह, आलमगीर द्वितीय आदि) दफ़न किये गए है साथ ही बहादुर शाह जफ़र के पुत्र को भी इसमें दफनाया गया है |
आगरा में निर्मित भवन
- आगरा का किला - जो अकबरी शैली का प्रथम उदाहरण है | 1565 ई. में बनना शुरू हुआ और 8 वर्षों में बनकर तैयार हुआ, जो यमुना नदी के दाहिने छोर पर स्थित है | अकबर के प्रधान कारीगर कासिम खां के निरीक्षण में इस किले का निर्माण हुआ था | इसकी दीवारों के बारे में बताया जाता है की इसके ऊपर से नीचे तक के भाग को लाल पत्थरों के लोहे की रिंग्स से इस तरह जोड़ा गया है की उनके बीच में एक बाल भी नही जा सकता |
- इस किले के भीतर 500 से ज्यादा भवनों का निर्माण अकबर ने करवाया था जिनमे से कुछ बंगाल तथा गुजरात की शैली पर आधारित है |
- लाल पत्थरों से निर्मित ये किला दो प्रवेशद्वार में विभक्त है, मुख्य द्वार जिसे दिल्ली दरवाजा या हाथी दरवाजा कहते है |
- जहांगीरी महल - अपने पुत्र शहजादे सलीम के रहने के लिए अकबर ने इस किले का निर्माण का करवाया था | जो लाल पत्थरों से निर्मित वर्गाकार में है |
- अकबर को ग्वालियर की शैली ने बेहद आकर्षित किया, इसीलिए ग्वालियर के मानमंदिर की छाप तथा नक्काशी जहांगीरी किले में देखने को मिलती है |
- जहांगीरी महल में गुम्बदों के स्थान पर छतरियों का इस्तेमाल किया गया है, इससे यह स्पष्ट होता है की ये महल हिन्दू स्थापत्य कला से सम्बन्ध रखता है |
- अकबरी महल - आगरे के किले में स्थित अकबरी महल जहांगीरी महल की शैली की अपेक्षा कम प्रभावी है |
- लाहौर का किला - इसका निर्माण अकबर के किले के निर्माण के समकालीन माना जाता है इसकी शैली भी अकबर के किले से मेल खाती है |
- इस किले में भी कई भवनों का निर्माण किया गया है, जो लाल पत्थरों से निर्मित है | इन भवनों में कोष्ठकों का प्रयोग किया गया है साथ ही पशु-पक्षियों के चित्र भी अंकित है |
- अटक का किला - अपने साम्राज्य की सुरक्षा हेतु अकबर ने 1581 ई. में इस किले का निर्माण करवाया था |
- इलाहाबाद का किला - इसका निर्माण 1583 ई. में हुआ था लेकिन इसका ज्यादातर हिस्सा नष्ट हो चुका है और इसमें जनाना नामक एक मण्डप है जो अभी सुरक्षा के घेरे में है |
फतेहपुर सीकरी
- फतेहपुर सीकरी वाही स्थान है जिसे अकबर ने अपनी राजधानी बनाई थी |
- आगरा से तेईस मील दूरी पर सीकरी नामक एक गाँव था, यहाँ पर मशहूर सूफी संत शेख सलीम चिश्ती रहा करते थे जिनके आशीर्वाद से अकबर के पुत्र सलीम का जन्म हुआ था |
- 1572 ई. में गुजरात को फतह करने के बाद अकबर ने इसका नाम फतेहपुर सीकरी या विजय नगरी रख दिया |
- यहाँ अकबर ने कई भवनों का निर्माण करवाया - दीवान - ए - आम, दीवान - ए - ख़ास, कोषागार, ज्योतिषी की बैठक, पंचमहल, ख़ास महल, हवा महल, जोधाबाई का महल, बीरबल का महल, 9 महल, तुर्की सुल्ताना की कोठी, मरियम की कोठी, शेख सलीम चिश्ती का मकबरा, इस्लाम खां का मकबरा, शाही अस्तबल, बुलंद दरवाजा, सराय, जामा मस्जिद, हिरन मीनार आदि |
- फतेहपुर सीकरी के भवनों को दो श्रेणियों में विभक्त किया गया है - पहला धार्मिक और दूसरा लौकिक, धार्मिक भवनों में जामा मस्जिद प्रमुख है, वहीँ लौकिक भवनों की संख्या अधिक है जिनमें महल, कार्यालय, सराय आदि सम्मिलित है |
- दीवान - ए - ख़ास में ही अकबर का प्रसिद्द इबादतखाना था जहाँ हर शुक्रवार को वह विभिन्न धर्मों के विद्वानों के साथ विचार-विमर्श करता था |
- जोधाबाई का महल फतेहपुर सीकरी के भवनों में सबसे बड़ा है |
- मरियम के महल में स्तंभों पर हाथी, पशु, युद्ध, जुलूस, शिकार, और परियों का चित्र बनाया गया है जिसके कारण इसे अकबर का रंगीन महल या चित्रालय भी कहा जाता है |
- अनूप तालाब जिसके मध्य में एक चबूतरा था | यहीं पर अकबर परिचर्चाएं और संगीत का आयोजन करता था |
जहाँगीर
जहाँगीर में स्थापत्य कला के साथ -साथ बाग़ - बगीचों के प्रति भी अधिक रूचि थी | इसके द्वारा बनवाए भवनों में पीतादुरा या जड़ाऊ रंगीन पत्थरों का प्रयोग किया गया था | इसके अतिरिक्त जहाँगीर के अवधि के दौरान फुलवारी और बड़े उद्दयानों का भी निर्माण हुआ | कुछ भवनों का भी निर्माण हुआ जो निम्न्वत है -
- अकबर का मकबरा जो आगरा से पाँच मील दूर स्थित सिकंदरा में है | अकबर ने इसका नाम बहिश्ताबाद रखा था | इस मकबरे में पाँच मंजिले है और अकबर की कब्र पहली मंजिल पर है |
- अकबर के मकबरे में बौद्ध शैली का प्रयोग देखने को मिलता है |
- एतमाद - उद्द - दौला का मकबरा ये जहाँगीर द्वारा निर्मित दूसरी महत्वपूर्ण इमारत है | एत्माद्दुदौला नूरजहाँ के पिता थे | नूरजहाँ ने इसका निर्माण 1626 ई. में ईरानी शैली के आधार पर करवाया था |
- जहाँगीर का मकबरा जहाँगीर का मकबरा लाहौर में शहादरा में रावी नदी के किनारे दिलकुशा बाग़ में स्थित है | इस मकबरे की योजना जहाँगीर ने खुद ही बनाई थी लेकिन इसका निर्माण जहाँगीर की पत्नी नूरजहाँ की निरीक्षण में हुआ | वर्गाकार में निर्मित ये मकबरा एक विशाल उद्यान के मध्य स्थित है |
- जहाँगीर के समय में बनी अन्य भवनों में लाहौर में स्थित मोती मस्जिद तथा अनारकली का मकबरा भी प्रमुख है |
शाहजहाँ
शाहजहाँ मुग़ल शासकों में सबसे महान भवन निर्माणकर्ता था | इसका काल मुग़ल स्थापत्य कला का स्वर्ण युग था | शाहजहाँ के शासनकाल में कुछ रोचक शैलियों का विकास हुआ जैसे दांतेदार मेहराब, ऊँचा उठा दोहरा गुम्बद आदि | शाहजहाँ ने भवन निर्माण में लाल बलुआ पत्थर का कम बल्कि संगमरमर के पत्थरों का प्रयोग बड़े पैमाने पे किया और संगमरमर के पत्थरों को जोधपुर के निकट मकराना की खानों से लाया जाता था | इतना ही नहीं जहाँगीर ने लाल पत्थरों से निर्मित कुछ भवनों को संगमरमर में रूपांतरित करवाया था जैसे जहांगीरी महल | शाहजहाँ के शासन काल में भवनों का निर्माण का स्वरुप भी अलग देखने को मिलता है, जैसे आयातकार भवनों के स्थान पर वृत्ताकार भवनों का निर्माण किया गया भवनों की छतें झुकावदार है | इसके अतिरिक्त अलंकरण को विशेष महत्त्व दिया गया है | शाहजहाँ के समय के ज्यादातर भवनों का निर्माण प्राकृतिक परिवेश, फव्वारों से युक्त उद्यानों तथा कृत्रिम नहरों के मध्य हुआ है |
आगरा में शाहजहाँ द्वारा निर्मित भवन
- ताजमहल - ये विश्व के सबसे खूबसूरत भवनों में से एक है | जिसे शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल (अरजुमंद बानो बेगम) की याद में बनवाया था | यह आगरा में यमुना नदी के किनारे स्थित है | ताजमहल को एक वफादार आशिक का खिराज कहा जाता है | ताजमहल के मुख्य स्थापत्यकार उस्ताद अहमद लाहौरी था जिसे नादिर - उल - असरार की उपाधि दी गयी थी ताजमहल का निर्माण 1631 में प्रारंभ हुआ और 1653 में (22 वर्षों में) बनकर तैयार हुआ | इसके दोनों तरफ मस्जिद स्थित है जिनके निर्माण में लाल पत्थरों का प्रयोग किया गया है |
- दीवान - ए - आम - इसका निर्माण अकबर द्वारा आगरा के किले के अन्दर करवाया गया था लेकिन 1627 ई . में शाहजहाँ ने इसे तुड़वाकर फिर से एक नया रूप दिया | आगरा के किले में संगमरमर से निर्मित यह पहला भवन था | यह एक विशाल भवन है जो तीन ओर से खुला हुआ है|
- दीवान - ए - ख़ास - इसका निर्माण शाहजहाँ ने 1637 ई . में करवाया था | शाहजहाँ के अन्य इमारतों में दीवान - ए - ख़ास अधिक अलंकृत है |
- शीश महल - यह एक शाही स्नानागार था जिसकी दीवारों तथा मेहराबों पर शीशे जड़े हुए थे |
- मुसम्मन बुर्ज - यह छः मंजिला भवन है | मुमताज महल की मृत्यु के बाद शाहजहाँ इसी में रहता था | इसके अतिरिक्त शाहबुर्ज तथा नगीना मस्जिद भी इन भवनों में से एक है |
दिल्ली में शाहजहाँ द्वारा निर्मित भवन
- जामा मस्जिद - ये मस्जिद दिल्ली के लाल किले के बाहर एक चबूतरे पर स्थित है | यह भारत की सबसे विशाल और महत्वपूर्ण मस्जिद है | इसमें तीन प्रवेश द्वार है | इसके उपरी भाग पर तीन गुम्बद स्थित है |
- लाल किला - 1638 ई . में शाहजहाँ ने दिल्ली में अपने नाम पर शाहजहांनाबाद नमक एक नगर की स्थापना की और उसे अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया | यह किला नौं वर्षों में बनकर तैयार हुआ | शाहजहांनाबाद के प्रमुख भवनों में लाल किले का नाम सबसे पहले आता है | इसका निर्माण हमीद और अहमद नामक शिल्पकारों की निरीक्षण में हुआ था | इस किले को लाल बलुए पत्थरों से निर्मित किया गया है, इसलिए इसे लाल किला कहा जाता है | शाहजहाँ और औरंगज़ेब के शासनकाल में लाल किले का नाम किला - ए - मुबारक था | इस किले की लम्बाई 3100 फ़ीट तथा चौड़ाई 1650 फीट है | मुग़लों द्वारा निर्मित ये अंतिम किला था | लाल किले में स्थित प्रमुख भवन निम्नलिखित है -
- दीवान - ए - आम
- मुमताज का ख़ास महल
- रंग महल (बादशाह का निजी निवास) इसकी छत चाँदी से विभूषित थी तथा इसपे सोने का कार्य किया गया था | रंग महल के मध्य में स्वर्ग की नाहर नामक कृत्रिम नाहर बहती थी |
- इम्तियाज महल
औरंगज़ेब
औरंगज़ेब के गद्दी पर बैठने के बाद मुग़ल साम्राज्य तथा मुग़ल स्थापत्य कला का विनाश चरम पर पहुँच गया | किन्तु अपने शासनकाल में उसने कुछ भवनों क का निर्माण करवाया था जो निम्न्वत है -
- दिल्ली की मोती मस्जिद - संगमरमर से निर्मित यह मस्जिद लाल किले के अन्दर स्थित है |
- लाहौर की बादशाही मस्जिद - यह औरंगज़ेब के समय की दूसरी महत्वपूर्ण मस्जिद है जिसका निर्माण 1674 ई . में फिदाई खां की देख रेख में हुआ था
- राबिया - उद - दौरानी का मकबरा - औरंगाबाद में स्थित ये मकबरा औरंगज़ेब की पत्नी राबिया - उद - दौरानी का है | इसे बीबी का मकबरा तथा द्वितीय ताज (ताजमहल शैली पर आधारित होने के कारण) भी कहते है | इसका निर्माण औरंगज़ेब ने 1678 ई . में करवाया था |
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