क्या  अरावली  सिर्फ  पहाड़ों  की  एक  श्रृंखला  है??


क्या  उत्थान  के  लिए  प्रकृति  का  दोहन  ज़रूरी  है ?  सबसे  प्राचीन  पर्वतमालाओं  में  से  एक - अरावली,  जो  मात्र  एक  शृंखला  नहीं  बल्कि  भारतीय  इतिहास,  संस्कृति  और  पर्यावरण  का  हिस्सा  रही  है  लेकिन  आज  उसी  हिस्से  को  मिटाने  की  तैयारियां  जोरो - शोरो  से  चल  रही  है |  मानव  लालच  और  अंधाधुंध  विकास  जैसी  प्रणाली  का  शिकार  बनती  जा रही  है - अरावली |  तो  चलिए  आज  आपको  अरावली  के  इतिहास  से  रूबरू  कराते  हैं  वही  अरावली  जो  सदियों  से  उत्तर  भारत  की  ढाल  बनकर  खड़ी  है |

मैं  अरावली  नहीं,  एक  चेतावनी  थी  प्रकृति  की,
तुमने  मुझे  काटकर  अपनी  ही  सांसों  को  रोक  लिया  है।      

मैं  अरावली  नहीं,  जीवन  की  लहर  थी,
अब  तुम्हारी  लालच  मुझे  सिर्फ़  धूल  में  बदल  रहा  है।



"100  मीटर"  का  नियम 


अरावली  को  लेकर  एक  नई  परिभाषा  सुप्रीम  कोर्ट  ने  दी  है -  अरावली  की  ज़मीन  समुद्र  तल  से  नही  बल्कि  उसके  आसपास  की  जमीन  के  मुकाबले  मापी  जाएगी |  अगर  कोई  पहाड़ी  अपने  चारों  ओर  की  ज़मीन  से  100  मीटर  या  उससे  ज्यादा  ऊपर  है  तो  वो  अरावली  की  श्रेणी  में  आएगी  लेकिन  अगर  ऊँचाई  का  अंतर  100  मीटर  से  कम  होगा  तो  वो  कानूनी  तौर  पर  अरावली  नहीं  मानी  जाएगी |  FSI  आँकड़ों  के  अनुसार  अरावली  की  कुल  12,081  पहाड़ियों  में  से  1,048  ही  नई  परिभाषा  को  पूरा  करती  है  और  नतीजा  ये  है  कि  लगभग  90%  अरावली  क्षेत्र  निर्माण  और  खनन  की  श्रेणी  में  आ  सकता  है |

जहाँ  एक  तरफ  नई  परिभाषा  अरावली  को  हटाने  की  बात  कही  गयी  तो  वही  दूसरी  तरफ  भूपेंद्र  यादव  का  कहना  है  कि  अरावली  में  खनन  पर  सख्त  नियंत्रण  है  और  शेष  90%  क्षेत्र  को  सुरक्षा  के  दायरे  में  रखा  गया  है | 

प्राचीन  पहाड़ियों  की  कहानी - अरावली 


अरावली  पर्वत  प्रोटेरोजोइक  युग  में  लगभग  250 - 350  करोड़  साल  पहले  बने |  अरावली  पर्वत  तब  अस्तित्व  में  आये  जब  न  तो  गंगा  थी  और  न  ही  हिमालय,  महाद्वीपों  का  जुड़ना  शुरू  ही  हुआ  था |  अरावली / अरवालि  एक  संस्कृत  शब्द  है  जिसका  मतलब  है  "पत्थरों  की  पंक्ति"|  हिमालय  जैसी  नवीन  पर्वत  श्रृंखलाएँ  लगभग  5  करोड़  वर्ष  पुरानी  हैं  लेकिन  अरावली  की  उत्पत्ति  250  करोड़  वर्ष  पहले  से  ही  मानी  जाती  है |  करीब  670  किलोमीटर  लम्बी  ये  श्रृंखला  राजस्थान,  हरियाणा,  गुजरात  और  दिल्ली  तक  फैली  हुई  है |

भारत  के  प्राचीन  इतिहास  से  ही  अरावली  पर्वतों  का  महत्व  रहा  है  उदाहरण  के  तौर  पर - इसी  श्रृंखला  में  चित्तौड़गढ़  और  कुंभलगढ़  जैसे  किले  बने  हुए  हैं  और  मध्यकाल  में  मुग़लों  से  हो  रहे  संघर्ष  के  दौरान  इन्हीं  दुर्गम  पहाड़ियों  ने  महाराणा  प्रताप  जैसे  वीर  योद्धाओं  को  आश्रय  दिया |



अरावली  का  विस्तार  कहाँ  तक ?? 


अरावली  पर्वत  श्रृंखला  की  शुरुआत  गुजरात  के  पालनपुर  से  मानी  जाती  है  और  राजस्थान  में  इसका  सबसे  अधिक  विस्तार  है  (लगभग  80%)  जहाँ  ये  सिरोही  से  झुंझुनूं  तक  फैली  है |  इसके  बाद  ये  पर्वतमाला  हरियाणा  में  प्रवेश  करती  है,  गुरुग्राम - फरीदाबाद  क्षेत्र  से  होकर  गुजरती  है  और  इसका  अंतिम  सिरा  देश  की  राजधानी  दिल्ली  दक्षिण - पश्चिम  हिस्से  में  रायसीना  पहाड़ी  तक  फैला  हुआ  है  जो  राष्ट्रपति  भवन  के  पास  स्थित  है |  अरावली  पर्वतमाला  की  ऊँचाई  लगभग  300 - 900  मीटर  के  बीच  है  और  इसकी  सबसे  ऊँची  चोटी  गुरु  शिखर  है  ऊँचाई  लगभग - 1,722  मीटर  राजस्थान  के  माउंट  आबू  हिल  स्टेशन  में  स्थित  है |    

अरावली  का  महत्त्व 


अरावली  सिर्फ  चट्टानों  की  एक  पंक्ति  नहीं  बल्कि  ये  उत्तर   भारत  के  लिए  एक  प्राकृतिक  मौसम  सुरक्षा  कवच  है  जो  सुरक्षा  की  दीवार  बनकर  खड़ा  है |  अगर  अरावली  न  रही  तो  भारत  अपना  एक  कीमती  शस्त्र  खो  देगा |  ये  श्रृंखला  कितनी  महत्वपूर्ण  है  आइए  जानते  हैं -

खनिज  धरोहर 

  • अरावली  पर्वत  खनिजों  से  संपन्न  हैं |
  • यहाँ  जस्ता,  सीसा,  संगमरमर,  चाँदी  और  तांबा  प्रमुख  रूप  से  बड़े  पैमाने  पर  पाए  जाते  हैं |
  • उदयपुर  और  राजसमंद  जैसे  क्षेत्र  खनन  उद्योग  के  लिए  नामी  स्थान  हैं |

जैव  विविधता 

  • अरावली  के  इस  व्यापक  क्षेत्र  को  इकोलॉजिकल  हॉटस्पॉट  के  रूप  में  जाना  जाता  है |
  • यहाँ  पाए  जाते  हैं  300  से  अधिक  पक्षी  प्रजातियाँ  साथ  में  तेंदुआ  और  स्लॉथ  भालू  जैसे  जीव |
  • पौधों  में  नीम,  बबूल  और  धोक  जैसी  प्रजातियाँ |
  • इसलिए  ये  कहा  जा  सकता  है  की  अरावली  प्राचीन  वनस्पतियों  और  जीवों  का  संरक्षित  स्थल  है |

जलवायु  और  पानी 

  • अरावली  पर्वत  श्रृंखला  मौसम  और  जल  स्रोत  दोनों  के  लिए  अहम  है |
  • ये  थार  रेगिस्तान  से  आने  वाली  गर्म  और  धूल  भरी  हवाओं  को  रोकती  है,  तो  सोचिए  अगर  अरावली  न  रही  तो  दिल्ली  और  NCR  के  इलाके  रेतीले  और  बंजर  हो  सकते  हैं |
  • मानसून  की  हवाओं  को  मोड़कर  ये  वर्षा  में  भी  मदद  करती  है |
  • अरावली  नदियों  की  जन्मस्थली  है - लूनी,  साबरमती  और  बनास |
  • ये  पहाड़ियाँ  पानी  को  संचित  करके  आसपास  के  भूजल  स्तर  को  संतुलित  बनाये  रखती  हैं |


उदयपुर,  जो  आज  दुनिया  के  सबसे  खूबसूरत  शहरों  में  गिना  जाता  है  बिना  अरावली  के  शायद  इतना  जीवंत  न  होता |  उस  वक़्त  ये  शहर  अरावली  की  सुरक्षा  में  बसा  था  जो  हर  प्रकार  के  खतरे  से  लोगों  को  बचाती  थी |

अरावली  उत्तर  भारत  का  सुरक्षा  कवच  है  जो गर्म  हवाओं  को  रोकती  है,  वर्षा  के  पानी  को  संचित  करती  है  और  जीवन  को  स्थिर  बनाती  है |

अरावली  ने  अपने  सामर्थ्य  से  अधिक  मानव  को  सुरक्षित  रखा  है  अब  ये  मानव  का  कर्तव्य  है  कि  वो  उसे  कितने  समय  तक  जीवित  रख  पायेगा |

अरावली  सिर्फ  पहाड़  नही  ये  हमारी  हवा,  हमारा  पानी  और  हमारी  सुरक्षा  है 
इसे  खत्म  करना  भविष्य  को  खत्म  करने  जैसा  है |  
 




















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