बर्लिन की दीवार का इतिहास क्या है और उसे क्यों गिराया गया था???? 

ये कहानी विश्व युद्ध से शुरू होती है। जब द्वितीय विश्व युद्ध हुआ धुरी राष्ट्र और मित्र राष्ट्र के बीच। धुरी राष्ट्र में थे (जर्मनी, जापान और इटली) एवं मित्र राष्ट्र में थे (संयुक्त राष्ट्र, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस और सोवियत संघ)। इन दोनों के बीच युद्ध हुआ और धुरी राष्ट्रवाद के जो देश थे वो ये जंग हार गए। जर्मनी द्वितीय विश्वयुद्ध हार गई और एडोल्फ हिटलर ने आत्महत्या कर ली। जब जर्मनी हार गई तो मित्र राष्ट्र ने यह तय किया कि जर्मनी को अपने नियंत्रण में ले लेंगे और उसे चार भागों में विभाजित कर देंगे। पूर्वी जर्मनी का जो हिस्सा था वो सोवियत संघ को दे दिया गया और पश्चिमी जर्मनी का जो हिस्सा था उसके तीन अलग अलग भाग थे। एक संयुक्त राष्ट्र के पास था एक ग्रेट ब्रिटेन के पास और एक फ्रांस के पास गया।






अंत में सोवियत संघ का हिस्सा पूर्वी जर्मनी बन गया और बाकी तीन देश वाले पश्चिमी जर्मनी बन गए। पूर्वी जर्मनी के लोग पश्चिमी जर्मनी की तरफ जाते थे। बर्लिन जो कि जर्मनी की राजधानी थी और वो पूरा का पूरा पूर्वी जर्मनी के अंदर ही आता था तो अब ये निश्चय किया गया कि बर्लिन को भी दो हिस्सों में बाँट दिया जाए। एक पूर्वी बर्लिन होगा और एक पश्चिमी बर्लिन होगा। सोवियत संघ की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी लेकिन पूर्वी जर्मनी में शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का समाधान मुफ्त में होता था लेकिन लोगों को नौकरियाँ मिलने में परेशानी होती थी। बेरोजगारी बहुत ज्यादा थी और इसी नौकरी को पाने के लिए पूर्वी जर्मनी के लोग पश्चिमी जर्मनी की तरफ चले गए।




अगस्त 1961 तक पूर्वी जर्मनी की 20% जनसंख्या पश्चिमी जर्मनी में जा चुकी थी और इसमें लगभग 33 लाख लोग थे। इसे लेकर बहुत सी बैठक भी हुई लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। सोवियत संघ ने संयुक्त राष्ट्र के राष्ट्रपति से कहा कि पूरा पश्चिमी बर्लिन हमें दे दो लेकिन संयुक्त राष्ट्र राजी नहीं हुआ। फिर ये निश्चिय किया गया कि बीच में एक दीवार बनाई जाएगी जो पूर्वी बर्लिन और पश्चिमी बर्लिन को एक दूसरे से अलग करेगी। 13 अगस्त 1961 को दीवार बना दी गई।


जैसे जैसे समय बीतता गया सरकार उस दीवार को और भी मजबूत बनाती गई। लेकिन अब लोग ये सोचने लगे कि इस दीवार को पार कैसे किया जाए??? 1980 के आते आते सोवियत संघ की आर्थिक व्यवस्था और भी खराब हो गई थी। सही तरीके से चुनाव नहीं होते थे।। सोवियत संघ को 1989 में एक नया नेता मिला मिखाएल गोबराचेव। जिन्होंने चीजों को संभालने की कोशिश की। उन्होंने आर्थिक स्थिति को विकेंद्रीकरण करना शुरू कर दिया और पहली बार प्राइवेट कंपनी को इजाजत दे दी। पहली बार अपने देश में मैक डोनाल्ड खुलने की भी इजाजत दे दी।


लेकिन सोवियत संघ की स्थिति तब तक इतनी खराब हो गई थी कि जहाँ भी गोबराचेव जाते थे वहाँ पर नारे सुनने को मिलते थे कि कृपया हमें आकर बचा लो। फिर पूर्वी जर्मनी ने ये निश्चय किया कि बार्डर पर जो कठोर प्रस्ताव रखे गए हैं उन्हें सुलझाया जाए। जर्मन के राजनीतिज्ञ थे ग्यूंटर शबोस्की उन्हें काम दिया गया कि वो प्रस्ताव जो दीवार को लेकर लाया गया था उस प्रस्ताव को हटाने का काम सही ढंग से किया जा रहा है या नहीं। लेकिन दोनों ही तरफ के देश चरम सीमा पर पहुँच गए थे। बर्लिन दीवार के पास हजारों लाखों लोगों की भीड़ लग गई।




वहाँ के जो गार्ड थे वो भी परेशान हो गए। पूर्वी जर्मनी के सभी लोग दीवार तोड़ते हुए उस पार चले गए। 9 नवंबर 1989 को ये एक ऐतिहासिक दिन माना जाता है। जब पूर्वी जर्मन के लोग पश्चिमी जर्मन की ओर गए तो वे सब हैरान हो गए क्योंकि ऐसे ऐसे लक्जरी सामान मिलते थे वहाँ पर जो कभी पू्र्वी जर्मन के लोगों ने देखा नहीं था। क्योंकि पूर्वी जर्मनी की आर्थिक व्यवस्था को इतनी सख्ती से नियंत्रण में रखा गया था कि वहाँ पर कभी प्राइवेट कंपनीज को लागू ही नहीं किया गया।।।



Post a Comment

और नया पुराने