सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) का इतिहास

हड़प्पा सभ्यता प्राचीन मेसोपोटामिया सभ्यता के आस पास इसका विकास हुआ। इसे सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। वर्ष 1924 में दयाराम साहनी और राखलदास बनर्जी की खोज के आधार पर जाॅन मार्शल ने इस सभ्यता की खोज की थी।

 यह सभ्यता भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में फैली हुई थी। 2600 से 1900 ई पूर्व इस सभ्यता को अस्तित्व में लाया गया था। इस सभ्यता की लीपि चित्रात्मक है। सेलखड़ी पत्थर पर लिखी लीपि को आज तक पढ़ा नहीं जा सका है। इस सभ्यता का खोजा गया पहला शहर हड़प्पा है तथा खोजा गया प्रमुख शहर मोहनजोदड़ो है। सभ्यता के बाट, पत्थर और फलक बलूचिस्तान तथा गुजरात जैसे क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं। इस सभ्यता में कांस्य धातु से बने पदार्थ प्राप्त होने के कारण इसे कांस्ययुगीन कहा जाता है।

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख केंद्र

मोहनजोदड़ो - इसे मृतकों का टीला कहा जाता है। इसके पश्चिम दुर्ग टीले को स्तूप टीला कहा जाता है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त वृहत स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है। जिसके बीच में स्थित स्नानकुंड 11.88 भी लंबा 7.01 भी चौड़ा और 2.43 मी गहरा है।

कालीबंगा - यहाँ का नगर दुर्ग समानांतर चतुर्भुजाकार है और यहाँ अलंकृत ईंटों का उपयोग किया गया है। यहाँ से शल्य चिकित्सा के प्रमाण मिलते हैं।

चन्हूदड़ो - यहाँ किलेबंदी का अभाव था। शिल्प उत्पादन में  चन्हूदड़ों प्रमुख स्थल था। यहाँ पर वक्राकार ईंटें भी मिले हैं।

लोथल - यह एक बंदरगाह नगर था जहाँ एक घर से सोने के दाने, सेलखड़ी की मुहरें तथा रँगा हुआ एक मिट्टी का जार भी मिला है।

बनावली - यहाँ की नगर योजना शतरंज के जाल के समान थी। यहाँ से जौ तथा हल की आकृति का खिलौना भी प्राप्त हुआ है।

हड़प्पा सभ्यता में जीवन निर्वाह की प्रक्रियाएँ

(कृषि प्रौद्योगिकी)

यहाँ की मुख्य फसल कपास, खजूर, मटर, राई, सरसों, जौ, दाल, तिल और गेहूँ थे‌। यहाँ खेती के लिए बैलों का प्रयोग किया जाता था जिसका साक्ष्य बनावली के मिट्टी के हल के रूप में प्राप्त हुआ है और यहाँ‌ एक स्थान पर दो फसलें उगाने के संकेत मिले हैं। विश्व में सबसे पहले कपास की खेती यहीं से प्रारंभ हुई थी इसी कारण यूनानियों ने इसे सिण्डाॅन कहा है। 

(पशुपालन एवं शिल्प उत्पादन)

बैल, भेड़, बकरी आदि पशु पालते थे। पशु पक्षी और मछलियों के साक्ष्य की प्राप्ति के आधार पर यहाँ के लोग मांसाहारी हुआ करते थे। शिल्प में मनके बनाना, धातु कर्म  मुहर निर्माण, शंख की कटाई और बाँट बनाना आदि शामिल थे।

(व्यापार व्यवस्था)

बाजार एवं कच्चे माल की उपलब्धता थी। दूर के क्षेत्रों से कच्चा माल प्राप्त करने के लिए व्यापारिक केन्द्रों के आसपास बस्तियां बनाई गई हैं जैसे अफ्गानिस्तान। सिंधु सभ्यता में सिक्के नहीं मिले हैं और वस्तुओं का लेनदेन करके व्यापार किया जाता था। भारत में चाँदी सबसे पहले सिंधु सभ्यता में पाई गई थी।

(धार्मिक व्यवस्था)

इस सभ्यता में मातृ देवी, आद्य शिव, लिंग तथा प्राकृतिक तत्वों की पूजा की जाती थी। पालथी मारकर बैठे हुए योगी को आद्य शिव माना गया है और नाग की भी पूजा की जाती थी।

(सामाजिक व्यवस्था)

समाज चार वर्गों में बँटा हुआ था - विद्वान, योद्धा, व्यापारी और शिल्कार। हड़प्पा निवासी ऊनी एवं सूती दोनों प्रकार के वस्त्र पहनते थे। सामान्य जीवन की उपयोगी वस्तु पत्थर अथवा मिट्टी जैसे पदार्थों से बनाई जाती थीं और कीमती धातुओं का प्रयोग किया जाता था जैसे - फयाॅन्स से बने लघुपात्र। हड़प्पा सभ्यता में शवाधान की तीन पद्धतियाँ प्रचलित थी....

1- पूर्ण शवाधान

2- आंशिक शवाधान

3- शवदहन

जल निकासी व्यवस्था

घरों के गंदे पानी को निकालने के लिए घरों की दीवारों को नाली से जोड़ा जाता था नाली जमाई गई ईंटों से तैयार की जाती थी। नालियों के बीच में हौद होती थी जिसमें से एकत्रित कचरे को बाहर निकालकर नालियों में जलप्रवाह को बनाए रखा जाता था।

हड़प्पा सभ्यता का पतन और उसका कारण

1800 ई. पू. तक चोलिस्तान जैसे क्षेत्रों में हड़प्पा सभ्यता का पतन हो गया जिसके चिन्ह स्पष्ट हैं।

मुहर, बाँट, हस्तशिल्प तथा लंबी दूरी के व्यापार समाप्त हो गए थे। इसके बाद की संस्कृति को उत्तर हड़प्पा के नाम से जाना जाता है।

(पतन के कारण)

जलवायु परिवर्तन, आर्यों का आक्रमण, वनों का समाप्त होना, अनेक कारणों से हड़प्पा सभ्यता का पतन हो गया। इस सभ्यता के पतन का मुख्य कारण केंद्रीकृत राज्य का अंत होना था।

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