विक्रम बत्रा : जीवन परिचय


कारगिल युद्ध के मैदान में भारतीय सेना को जीत हासिल कराने में बहुत से महान वीरों को श्रेय जाता है साथ ही उन वीरों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी। उन्हीं में से एक साहसी वीर योद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा जिनका इस जीत में अहम योगदान रहा है। कैप्टन विक्रम बत्रा जो अपने देश पे कुर्बान हो गए आज वो हमारे युवाओं के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा हैं। कैसा था इनका सफर और किस प्रकार ये यहाँ तक पहुँचे? आइए जानते हैं।

विक्रम बत्रा का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

विक्रम बत्रा का जन्म दो जुड़वां बच्चे के रूप में 9 सितंबर,1974 को पालमपुर (हिमाचल प्रदेश) नाम के एक गाँव में हुआ था। विक्रम के पिता का नाम गिरधारी लाल बत्रा और माँ का नाम कमलकांता बत्रा था। इनकी दो बहनें भी थी जिनका जन्म विक्रम और उनके भाई से पहले हुआ था। कमलकांता जी यानी विक्रम की माताजी उन्हें श्रीरामचरितमानस में बहुत दिलचस्पी थी और भगवान के प्रति श्रद्धा भी थी इसीलिए उन्होंने अपने दोनों बेटों का नाम लवकुश रख दिया। लव विक्रम का नाम था और कुश विशाल का।

सबसे पहले डी.ए.वी स्कूल में एडमिशन लिया और उसके बाद सेंट्रल स्कूल गए। ये स्कूल सेना छावनी में मौजूद था जिसकी वजह से विक्रम सेना के सभी कार्यों से परिचित हो गए। वहाँ के नियम कानून और अनुशासन को देखकर उन्होंने बहुत कुछ सीखा और साथ ही उनके पिता उन्हें देश प्रेम की अनोखी बातें भी बताया करते थे। पढ़ाई के साथ साथ वो एक जबरदस्त खिलाड़ी भी थे, वो टेबल टेनिस में माहिर थे और संस्कृत जैसे विषय में उनकी गहरी रुचि थी। संस्कृत से जुड़े सभी कार्यक्रमों में विक्रम सबसे पहले हिस्सा लिया करते थे।

इसके बाद विक्रम डी.ए.वी काॅलेज (चंडीगढ़) में एडमिशन लिए जहाँ पर वो विज्ञान विषय से स्नातक की पढ़ाई पूरी किए और यही वो समय था जब विक्रम को NCC का कैडेट घोषित किया गया, जिससे उन्हें गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा लेने का मौका मिला। अब एक इंडियन आर्मी बनना विक्रम का सपना ही नहीं बल्कि उनका संकल्प भी था। फिर उन्होंने CDS यानी संयुक्त रक्षा सेवा की परीक्षा के लिए खुद को तैयार किया। इस दौरान विक्रम को हांगकांग से मर्चेंट नेवी पद के लिए बुलाया गया था लेकिन उन्होंने खुद इसे स्वीकार करने से इंकार कर दिया।

विक्रम बत्रा : प्रेम कहानी

विक्रम बत्रा के जीवन से एक और कहानी जुड़ी है उनकी प्रेम कहानी। ये कहानी बड़ी ही दर्दनाक और बहुत अजीब भी है। ये बात है उस समय की जब विक्रम चंडीगढ़ विश्वविद्यालय में M.A की पढ़ाई कर रहे थे तो वहीं पर विक्रम बत्रा डिंपल चिमा से मिलते हैं और उसी दौरान उनकी दोस्ती हो जाती है। धीरे धीरे वो एक दूसरे से प्यार करने लगे। जिसके बाद उन दोनों ने शादी करने का फैसला किया।


लेकिन शायद किस्मत को ये मंजूर नहीं था। देहरादून ट्रेनिंग के कारण विक्रम को चंडीगढ़ छोड़ के जाना पड़ा। सन् 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान विक्रम बत्रा इस दुनिया से शहीद हो गए और आज तक डिंपल चिमा ने शादी नहीं की वो आज भी अविवाहित हैं। उनके परिवार वालों ने उन्हें बहुत समझाया कि वो अपने जीवन की एक नई शुरुआत करें लेकिन वो कहती हैं कि - विक्रम की यादें मेरे लिए बहुत कुछ हैं और उन्हीं के सहारे मैं जी रही हूँ।

विक्रम बत्रा (भारतीय सेना का पद) 

स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद विक्रम CDS परीक्षा में सफलतापूर्वक पास होकर सेना में भर्ती हो गए। सन् 1996 में उन्हें भारतीय सैन्य अकादमी (Indian Military Academy) देहरादून में प्रवेश करने का मौका प्राप्त हुआ। अकादमी में 30 दिनों की ट्रेनिंग के बाद विक्रम बत्रा को 6 दिसंबर 1997 में सोपोर (जम्मू) स्थान पर 13 जम्मू कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर घोषित किया गया। इतना ही नहीं बल्कि सन् 1999 में वो कमांडो ट्रेनिंग के भी भागीदार बनें। 1 जून 1999 में जब उनके सैन्य दल को कारगिल युद्ध में भेजा गया। वहाँ पर हम्पी और राकी नाब को जीतने पर उन्हें कैप्टन बना दिया गया।


अब उन्हें ये जिम्मेदारी सौंपी गई कि श्रीनगर लेह में स्थित चोटी 5140 को पाकिस्तान की सेना से आजाद करवाना है। विक्रम बत्रा को ऐसी जगह पे भेजा गया जहाँ जाना इतना आसान नहीं था क्योंकि वो इलाका बहुत दुर्गम था। इसके बाद भी विक्रम बत्रा बड़ी बहादुरी से अपनी सेना को लेकर चल पड़े। 1999, 20 जून की सुबह 3:30 मिनट पर विक्रम बत्रा ने 5140 चोटी को फतह कर लिया और उस चोटी पर पहुँचकर भारतीय झंडा फहराया।

इस जीत को हासिल करने के बाद विक्रम ने रेडियो द्वारा अपनी जीत का ऐलान करते हुए कहा - (ये दिल मांगे मोर) जिसके बाद उनकी लोकप्रियता पूरे भारत में छा गई।

'शेरशाह' की उपाधि

"ऑपरेशन विजय" के दौरान कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल वाई.के जोशी द्वारा विक्रम बत्रा को एक कोड नाम दिया गया - "शेरशाह" कारगिल में विजय प्राप्त करने के बाद भारतीय सेना विक्रम बत्रा से बेहद संतुष्ट हुई इसीलिए उन्हें 'कारगिल का शेर' भी कहा जाता है।


4875 संकरी चोटी पर जीत

एक बार फिर से विक्रम बत्रा को एक बड़े युद्ध के लिए तैयार किया गया। इस बार उन्हें भी 4875 की संकरी चोटी पर कब्जा करना था और इसका एक रास्ता पाकिस्तान की सेना ने कब्जा कर रखा था। इन मुश्किलों से विक्रम घबराए नहीं और अपने साथियों के साथ दुश्मनों पर हमला करना शुरू कर दिया। शायद ये लड़ाई विक्रम बत्रा के जीवन की अंतिम लड़ाई थी क्योंकि इस लड़ाई के दौरान उन्हें भी बहुत घाव आए जिसके कारण वो ठीक से चल भी नहीं पा रहे थे। लेकिन अपनी जान जोखिम में डालकर दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया।


अपने साथी को बचाने के लिए वो सामने आए जिससे एक दुश्मन ने स्नाइपर से उनकी छाती में गोली मार दी और दूसरी गोली सीधा उनके सर पर जाकर लगी और थोड़ी ही देर में वो जमीन पर गिर गए और उसी समय विक्रम बत्रा इस दुनिया से अलविदा कह गए। लेकिन उनके साथियों ने इसका बदला लिया और 4875 संकरी चोटी को कब्जा कर लिया।

7 जुलाई 1999 को मृत्यु के अंतिम समय में विक्रम के अंतिम शब्द थे - जय माता दी। विक्रम बत्रा की बहादुरी और उनके साहस के लिए उन्हें भारत के सर्वोच्च और प्रतिष्ठित पुरस्कार परमवीर चक्र से नवाजा गया।


कैप्टन विक्रम बत्रा पर बनाई गई मूवीज

साल 2013 में बनी मूवी (LOC कारगिल) जिसमें अभिनेता अभिषेक बच्चन विक्रम बत्रा का किरदार निभाए थे। वहीं साल 2021 में बनी फिल्म (शेरशाह) में सिद्धार्थ मल्होत्रा ने एक बेहतरीन किरदार निभाया है। ये फिल्म धर्मा प्रोडक्शन और पेन इंडिया लिमिटेड द्वारा निर्मित और विष्णुवर्धन द्वारा की गई है।


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