भारतीय संविधान का संवैधानिक इतिहास


 (चार्टर अधिनियम)

भारतीय संविधान बनने से लेकर उसके पूरा होने तक कई अधिनियम लाए गए और वो सब एक कानून के रूप में बनकर तैयार हुआ। जैसे साल 1773 में रेग्यूलेटिंग एक्ट आया और 1784 में पिट्स इंडिया एक्ट लागू हुआ। इसी तरह से चार्टर अधिनियम की भी शुरुआत हुई। सन् 1793 यहाँ से चार्टर अधिनियम के बनने की शुरुआत होती है और यहीं से 20 वर्ष का नियम शुरू होता है मतलब एक अधिनियम बनने के बीस साल बाद दूसरा अधिनियम तैयार किया जाता था ऐसे ही पूरे चार अधिनियम बनाए गए जिसे चार्टर एक्ट या चार्टर अधिनियम कहते हैं।

सन् 1853 के बाद ये बीस साल वाला नियम खत्म कर दिया गया। इसके बाद 1858 में एक अधिनियम आया जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी की सारी शक्तियाँ अंग्रेजों के अधीन हो गई और 1858 में ही गवर्नर जनरल के पद को बदलकर वायसराय कर दिया गया।

1793 का चार्टर अधिनियम

Board of Control (BOC) नियंत्रित बोर्ड के सदस्यों की सैलरी भारतीय राजस्व से दी जाने लगी लेकिन कई भारतीयों ने इसका विरोध भी किया जिसमें दादाभाई नौरोजी प्रमुख थे। इन्होंने एक सिद्धांत दिया था Theory of Wealth जिसमें ये बताया गया था कि किस तरह से भारत का धन ब्रिटेन में जा रहा है। 

इसी अधिनियम के तहत भारत के सर्वोच्च न्यायालय को कानूनों की व्याख्या करने का अधिकार प्राप्त है।

1813 का चार्टर अधिनियम

उस समय ऐसा हुआ करता था कि ईस्ट इंडिया कंपनी में बाहरी देश या बाहरी देश के लोग व्यापार नहीं कर सकते लेकिन इस व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया और 1813 चार्टर अधिनियम के द्वारा अब कोई भी यहाँ आकर अपना व्यापार कर सकता है लेकिन चाय और चीन के साथ व्यापार अभी भी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ही कर रही थी।

व्यापारिक एकाधिकार (Commercial Monopoly) को समझने की कोशिश करें तो इसका मतलब ये है कि एक विशिष्ट स्थान पर कोई एक ही व्यक्ति वहाँ पर व्यापार कर रहा है तो इसे व्यापारिक एकाधिकार कहते हैं और ईस्ट इंडिया कंपनी भी यही कर रही थी जिस जगह पर उसका कब्जा था वहाँ पर ना कोई बाहरी व्यक्ति आ सकता था और ना ही कोई व्यापार कर सकता था।

ईंसाई मिशनरियों को उनके धर्म के प्रचार प्रसार के लिए छूट दे दी गई। उन्हें ये अनुमति दी गई कि आप कहीं भी स्कूल खोल सकते हैं और जगह जगह ईंसाई धर्म का प्रचार प्रसार कर सकते हैं।

ब्रिटिश व्यापारियों और इंजीनियर्स को भारत में लाइसेंस लेकर रहने की छूट दी गई।

1833 का चार्टर अधिनियम

जिस प्रकार से 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल बना दिया गया और वाॅरेन हाॅस्टिंग उस समय बंगाल के गवर्नर जनरल बनें लेकिन 1833 के अधिनियम में बंगाल के गवर्नर जनरल को पूरे भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया। 

बंगाल का पहला गवर्नर राॅबर्ट क्लाइव था और बंगाल का पहला गवर्नर जनरल वाॅरेन हाॅस्टिंग था। बात करें 1833 की तो इसमें बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया और उस समय भारत का गवर्नर जनरल लार्ड बैंटिक विलियम था। इन्होंने 1829 में राजा राम मोहन राय की मदद से सती प्रथा को खत्म किया था और यही बंगाल का अंतिम गवर्नर जनरल बना जिसे भारत का पहला गवर्नर जनरल बनाया गया।

अब गवर्नर जनरल की परिषद में एक और सदस्य को जोड़ दिया गया वो था कानून विशेषज्ञ (Legal expert) और जिसे सबसे पहले बनाया गया वो था लाॅर्ड मैकाले। गवर्नर जनरल दो आधार पर करते थे - कार्यपालिका और विधायिका। जब गवर्नर जनरल कार्यपालिका पे काम करते हैं तो उसमें कानून विशेषज्ञ उपस्थित नहीं होते लेकिन जब वो विधायिका के आधार पर काम करते हैं तो कानून विशेषज्ञ उनके साथ होता है।

विधि आयोग का गठन भी यहीं से शुरू हुआ। कानून को संहिताबद्ध करना मतलब अलग अलग धर्मों के लिए अलग अलग कानून हैं। 

भारत में जो भी अपराध होते हैं उसके लिए अलग अलग दंड विधान है जैसे CRPC और IPC जिसके बनने की शुरुआत यहीं से हुई। 

दास प्रथा को भी सुधारने की कोशिश की गई लेकिन लाॅर्ड एलन बरो द्वारा 1843 में इसे पूरी तरह से खत्म कर दिया गया।

व्यापारिक एकाधिकार को जड़ से समाप्त कर दिया गया। 1813 में हमने देखा कि चीन और चाय को छोड़कर सभी व्यापारिक एकाधिकार को खत्म कर दिया गया लेकिन अब चाय का भी व्यापार कर सकते थे और चीन के साथ भी व्यापार किया जाने लगा।

1853 का चार्टर अधिनियम

इस समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी था इसी ने झांसी को अपने कब्जे में कर रखा था। 1848 में सतारा को, 1850 में नागपुर और भी बहुत से जगह को इसने हड़प लिया था।

निदेशक मंडल (Board of Directors) की संख्या 24 होती थी लेकिन इस अधिनियम के तहत इसकी संख्या को 24 से 18 कर दिया गया।

सिविल सेवाओं में अब प्रतियोगी परीक्षा होने लगी। पहले जो लोग अमीर घर से हुआ करते थे उनको बड़े पद पर बैठा दिया जाता था लेकिन यहाँ पर इसे भी हटा दिया गया। इसकी शुरुआत लॉर्ड कार्नवालिस के समय हुई थी लेकिन लॉर्ड डलहौजी के समय ये पूरा हुआ। 

साल 1853 में जो चार्टर अधिनियम आया वो अंतिम राजलेख था इसके बाद जो लाया गया वो भारत शासन अधिनियम था।

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