मुंशी प्रेमचंद जी  


(1) ख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर होने की, आप मुझे पहचानते हो बस इतना काफी है।

(2)  अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे, जिसकी जितनी जरूरत थी उसने उतना पहचाना मुझे।

(3)  जिंदगी का फलसफा भी कितना अजीब है, शामें कटती नहीं और साल गुजरे जा रहे हैं।

(4)  एक अजीब सी दौड़ है ये जिंदगी, जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते हैं, और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ देते हैं।

(5)  बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर, क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है।

(6)  मैंने समंदर से सीखा है जीने जा सलीका, चुप-चाप से बहना और अपनी मौज में रहना।

(7)  ऐसा नहीं कि मुझमे कोई ऐब नहीं, पर सच कहता हूँ कि मुझमें कोई फरेब नहीं।

(8)  जल जाते हैं मेरे अंदाज से मेरे दुश्मन, क्योंकि एक मुद्दत से मैंने ना मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले हैं।

(9)  एक घड़ी खरीद कर हाथ में क्या बांध ली, वक्त पीछे ही पड़ गया मेरे।

(10) सोंचा था घर बना कर बैठूँगा सुकून से, पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफिर बना डाला।

(11) सुकून की बात मत कर ये ग़ालिब, बचपन वाला इतवार अब नहीं आता।

(12) जीवन की भाग दौड़ में क्यों वक़्त के साथ रंगत खो जाती है, हँसती खेलती जिंदगी भी आम हो जाती हैं।

(13) एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम, और आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है।

(14) कितने दूर निकल गए हम रिश्तों को निभाते-निभाते, खुद को खो दिया हमने अपनों को पाते-पाते।

(15) लोग कहते हैं हम मुस्कुराते बहुत हैं, और हम थक गए दर्द को छुपाते-छुपाते।

(16) खुश हूं और सबको ख़ुश रखता हूँ, लापरवाह हूँ और फिर भी सबकी परवाह करता हूँ।

(17) मालूम है कोई नही है मेरा, फिर भी कुछ अनमोल लोगों से रिश्ता रखता हूँ।

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