नागरिकों के मौलिक अधिकार 👩👩👧👧👨👨👧👦👨👧👧👍
भरतीय संविधान में भारत के नागरिकों के लिए कुछ मौलिक अधिकारों का प्रावधान है, जो भारत के नागरिकों को उनका जीवन स्वतंत्रता पूर्वक बिना किसी हस्तक्षेप के जीने में मदद करता है। इन अधिकारों को सामान्य स्थितियों में सीमित नहीं किया जा सकता है, अर्थात जब परिस्थितियां सामान्य हों तो सरकार द्वारा इन अधिकारों में किसी भी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। भारतीय संविधान के तीसरे भाग में इन अधिकारों का उल्लेख किया गया है । इन अधिकारों की सुरक्षा स्वयं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जाती है। ये अधिकार सभी भारतीय नागरिकों को उनका जीवन स्वतन्त्रता पूर्वक जीने के लिए कुछ अधिकार प्रदान करते हैं, जिससे भारतीय नागरिक शांति के साथ, सामान्य रूप से अपना जीवन यापन कर सकें । आइये विस्तार से इन अधिकारों के विषय में जानते हैं।
प्रारंभ में भारत के मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे किंतु वर्तमान में केवल 6 अधिकार हैं , जो भारतीय नागरिकों को भारतीय संविधान द्वारा प्रदान किये जाते हैं।
भारतीय संविधान के भाग तीन में सम्मिलित अनुच्छेद 12 से 35 मौलिक अधिकारों के संबंध में ही है। क्या आपको पता है कि मौलिक अधिकारों को अमेरिका के संविधान से लिया गया है। ये मौलिक अधिकार सरकार को नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन करने से रोकते हैं , और साथ ही किसी भी व्यक्ति के अधिकारों का समाज द्वारा हनन न हो इसका दायित्व भी राज्य पर डालते हैं । संविधान द्वारा नागरिकों को मूल रूप से 7 मौलिक अधिकार प्रदान किये गए थे , जो कि इस प्रकार है―:
1. समानता का अधिकार ।
2. स्वतंत्रता का अधिकार ।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार ।
4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार ।
5. संस्कृति एवं शिक्षा की स्वतंत्रता का अधिकार ।
6. सम्पत्ति का अधिकार ।
7. संवैधानिक उपचारों का अधिकार ।
हालांकि सम्पति के अधिकार को 1978 में 44वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान के तीसरे भाग से हटा दिया गया है । मौलिक अधिकार राज्य की मनमानी और शोषणकरी नीतियों से नागरिकों की सुरक्षा करते हैं । संविधान के अनुच्छेद 12 में राज्य की परिभाषा दी गई है, जो कुछ इस प्रकार से है:–
“राज्य” के अंतर्गत भारत सरकार और संसद तथा राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और विधान-मंडल तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकारी हैं ।
आइये इन अधिकारों के विषय में विस्तार से जाने:–
1. समता का अधिकार या समानता का अधिकार
“अनुच्छेद 14 से 18 के अंतर्गत अधिकार कानून के समक्ष समता का अधिकार अमेरिकी संविधान से उल्लिखित है।” इस अधिकार के अंतर्गत नागरिकों को निम्न प्रकार की स्वतंत्रता प्राप्त है।
(१) कानून के समक्ष समानता ।
(२) जाति, लिंग, धर्म तथा मूलवंश के आधार पर सार्वजनिक स्थानों पर इस अनुच्छेद के द्वारा किसी भी प्रकार का भेद-भाव करना वर्जित है।
(३) सार्वजनिक क्षेत्र में सभी नागरिकों को समान अवसर प्राप्त है । किंतु यदि सरकार आवश्यक समझे तो उन वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान कर सकती है जिनकी राज्य की सेवा में प्रतिनिधित्व कम है ।
(४) इस अनुच्छेद के द्वारा छुआ-छूत के आचरण का पालन करने वाले व्यक्ति को ₹500 का जुर्माना अथवा 6 महीने की कैद का कानून है । यह प्रावधान भारतीय संसद अधिनियम 1955 द्वारा जोड़ा गया था ।
(५) इसमे ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रारंभ की गई सभी उपाधियों का अंत कर दिया गया था, केवल शिक्षा एवं रक्षा की उपाधियों को देने की परंपरा को कायम रखा गया है ।
2. स्वतंत्रता का अधिकार
अनुच्छेद 19 से 22 के अंतर्गत भरतीय नागरिकों को अधिकार प्राप्त हैं ।
(१) वाक-स्वतंत्रता ( बोलने की आजादी) आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण । एकत्रित होना, समूह या यूनियन बनाना, कहीं भी आने-जाने और कहीं भी निवास करना, किसी भी प्रकार का व्यवसाय अपने जीविकोपार्जन के लिए करने की स्वतंत्रता का अधिकार है।
(२) अपराधों के लिए दोषसिद्धि के सम्बंध में संरक्षण की स्वतंत्रता का अधिकार है ।
(३) प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के संरक्षण का अधिकार है।
(४) शिक्षा प्राप्त करने की स्वतंत्रता का अधिकार है ।
(५) कुछ परिस्थितियों में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण का अधिकार है ।
इनमे से कुछ अधिकार राज्य की सुरक्षा, विदेशी राष्ट्रों के साथ भिन्नतापूर्वक संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता की अंतर्गत प्रदान किये गए हैं।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
अनुच्छेद 23 से 24 के अंतर्गत इस अधिकार का वर्णन किया गया है । इसमे नागरिकों को निम्न प्रकार के अधिकार प्राप्त हैं ।
(१) मानव के साथ दुर्व्यवहार और बालश्रम का निषेध है।
(२) कारखरनो आदि जैसी अन्य किसी स्थानों पर 14 वर्ष या उससे कम उम्र के बालकों से कार्य कराने पर प्रतिरोध है ।
(३) किसी भी प्रकार के शरीरिक या मानसिक शोषण पर प्रतिरोध है ।
4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
अनुच्छेद 25 से 28 के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का वर्णन किया गया है । इसमें नागरिकों को निम्न प्रकार के अधिकार प्राप्त हैं ।
(१) अन्तःकरण की और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता है। इसके अंतर्गत सिक्खों को किरपाण (तलवार) रखने की स्वतंत्रता प्राप्त है ।
(२) धार्मिक कार्यों के प्रबंध व आयोजन करने की स्वतंत्रता है ।
(३) किसी विशेष धर्म के विस्तार के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता है ।
(४) कुछ शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना की उपस्थिति होने के बारे में स्वतंत्रता प्राप्त है ।
5. संस्कृति एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार
अनुच्छेद 29 से 30 के अंतर्गत नागरिकों निम्न प्रकार के अधिकार प्राप्त है ।
(१) किसी भी वर्ग के नागरिक को अपनी संस्कृति की सुरक्षा करने, भाषा या लिपि बचाये रखने का अधिकार है।
(२) अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण करने अधिकार है ।
(३) शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों को अधिकार है ।
कुछ नियमों की पुनरावृत्ति है
अनुच्छेद 32 के अंतर्गत कुछ नियमों की पुनरावृत्ति का प्रावधान किया गया है ।
(१) सम्पदाओं आदि के अर्जन के लिए प्रबंध करने वाले नियमों की पुनरावृत्ति है ।
(२) कुछ अधिनियमों और विनियमो का विधि मान्यीकरण ।
(३) कुछ निदेशक तत्वो को कार्यशील करने वाली विधियों की पुनरावृत्ति ।
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार
अनुच्छेद 32 से 35 के अंतर्गत संवैधानिक उपचारों के अधिकार का वर्णन किया गया है । संवैधानिक उपचार के अंतर्गत 5 प्रकार के प्रावधान है ।
1. बंदी प्रत्यक्षीकरण :– के द्वारा किसी भी गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय की समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश जारी है । यदि गिरफ्तारी का तरीका या कारण गैरकानूनी या संंतोशजनक न हो तो न्यायालय उस व्यक्ति को छोड़ने का आदेश जारी कर सकता है ।
2. परमादेश :– यह आदेश उन परिस्थितियों में जारी किया जाता है, जब न्यायालय को लगता है कि कोई सार्वजनिक पदाधिकारी अपने संवैधानिक और कानूनी कर्तव्य्यों का पालन नहीं कर रहा है, और इससे किसी नागरिक का मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है ।
3. निषेधाज्ञा :– जब कोई निचली अदालत अपने अधिकार को बढ़ा कर किसी मुकदमे की सुुुनवाई करती हैं तो ऊपरी अदालतेें उसे ये करने से रोकने के लिए निषेेध आज्ञा या प्रतिषेेध लेेख जारी करती है ।
4. अधिकार पृच्छा :– जब न्यायालय को लगे कि कोई व्यक्ति ऐसे पद पर आसीन है जिस पर उसका कोई कानूूनी अधिकार नहीं है, तब न्यायालय अधिकार पृृच्छा आदेेेश जारी कर उस इंसान को उस पद पर काम करने से रोक देेता है ।
5. उत्प्रेषण रिट :– जब कोइ निचली अदालत या कोइ सरकारी अधिकारी बिना किसी अधिकार के कोइ कार्य करता है तो न्यायालय उसके सक्षम विचाराधीन मामलेे को उससे ले कर उत्प्रेषण द्वारा उसे बड़ी अदालत या सक्षम अधिकारी को सौप देेता है ।
डॉ. भीमराव आंबेडकर जी ने संवैधानिक उपचारों के अधिकार को “संविधान का हृदय और आत्मा” की संज्ञा दी है ।
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