1857 की क्रांति

भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम या भारत का सैनिक विद्रोह विभिन्न नामों से इस क्रांति को जाना जाता है। जिस समय ये क्रांति शुरू हुई उस समय भारत का गवर्नर जनरल "लार्ड कैनिंग" था और "पार्मस्टन" ब्रिटेन का प्रधानमंत्री था तथा मुगल शासक "बहादुर शाह ज़फ़र" था। क्रांति होने के पीछे बहुत से ऐसे कारण हैं जो लगभग किताबों में पढ़ा जा चुका है लेकिन इस लेख में  मुख्य कारणों की ही चर्चा की गई है।

 ★ क्रांति का स्वरूप

★ 1857 की क्रांति का कारण (आर्थिक कारण, सामाजिक एवं धार्मिक कारण, राजनीतिक कारण सैनिक कारण एवं तत्कालिक कारण)

★ 1857 की क्रांति की शुरुआत

★ विस्तार

★ परिणाम 

क्रांति का स्वरूप :  

1857 की क्रांति को अलग अलग नाम दिया गया है जैसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, भारत का सैनिक विद्रोह और भी अन्य है। जिसे लेकर इतिहासकारों में मत्भेद है और यही कारण है कि इसके स्वरूप को वास्तविक रूप नहीं मिल पाया है।

1857 की क्रांति का कारण :

1857 की क्रांति के होने के कारण को विभाजित किया गया है जिसमें राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक, आर्थिक, सैनिक तत्कालिक कारण की व्याख्या की गई है।

यदि राजनीतिक कारण में देखा जाए तो डलहौजी का शासनकाल इसका मुख्य कारण बना। वो जब भारत आया तो उसने एक नीति चलाई जिसे "हड़प नीति या "व्यपगत का सिध्दांत" (Doctrine of Lapse) के नाम से जाना जाता है। इस नीति के ज़रिए डलहौजी ने कई भारतीय रजवाड़े को राजनीतिक तौर पर ब्रिटिश में मिलाने का प्रयास किया जिसमें झांसी, सतारा, नागपुर, अवध शामिल था।


हड़प नीति के तहत गोद लेने की परंपरा को खत्म कर देना इन सब से भारतीय शासक परेशान थे जिस वजह से भारतीय रजवाड़े अंग्रेज़ों के खिलाफ हो गए थे।

आर्थिक कारण :

जनता अकाल के कगार पर थी जिसके बाद भी उन पर करों का बोझ डाला गया और अंग्रेज़ों के समय भारत की आर्थिक स्थिति बेहद ही खराब हो गई। उद्योगों का पतन हो गया कृषि और उद्योग के मध्य का संबंध समाप्त कर दिया गया। भारत के लोगों ने अंग्रेज़ों के इन नीतियों को मंजूरी नहीं दिया और विद्रोह में शामिल हो गए।

सामाजिक एवं धार्मिक कारण :

अंग्रेज़ों द्वारा चलाई गई कुछ ऐसी भी नीतियाँ थी जिससे समाज में सुधार तथा बदलाव लाने का प्रयास किया गया। उदाहरण के लिए "लार्ड बेंटिक" के समय सती प्रथा पर रोक लगाई गई "लार्ड कैनिंग" ने विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा दिया और बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाया गया। इसी प्रकार समाज में परिवर्तन हो रहा था लेकिन भारतीय को ये पसंद नहीं आ रहा था विशेष रूप से जो रूढ़िवादी थे, उन्हें लगता था कि सदियों से चली आ रही भारतीय परंपरा तथा हमारे द्वारा बनाए गए नियम कानून को अंग्रेज़ तोड़ना चाहते हैं।

दूसरी तरफ धार्मिक कारण से आशय है कि 1813 के चार्टर अधिनियम के तहत ईसाईं मिशनरियों को भारत में प्रवेश करने का अधिकार प्राप्त हुआ। ईसाईं भारत में आकर अपने धर्म का प्रचार प्रसार किए और उनका मुख्य उद्देश्य भारत को ईसाईं देश बनाना है..... ऐसा ईंसाईयों का कहना था।

सैनिक कारण :

भारतीय सैन्य संख्या अंग्रेजों के सैन्य संख्या से अधिक थी, जिसमें पाँच भारतीय सैनिक पर एक ब्रिटिश सैनिक की व्यवस्था थी। लेकिन भारतीय सैनिकों के साथ भेदभाव किया जाता था। मुख्य रूप से उनके वेतन में भेदभाव, रहन-सहन में भेदभाव इसके अलावा भारतीयों के लिए दाढ़ी मूंछ रखना उनकी शान हुआ करती थी लेकिन अंग्रेज़ों ने इस पर भी प्रतिबंध लगा दिया। अवध में भी अंग्रेजों ने अपना दबदबा बना लिया।

सन् 1854 के डाकघर अधिनियम जिसके ज़रिए सैनिक अपने घरों में पत्र भेजा करते थे उस पर भी अंग्रेज़ों द्वारा रोक लगा दिया गया।


तत्कालिक कारण :

सन् 1856 में एनफिल्ड राइफल को भारतीय सेना में शामिल किया गया और यहीं से क्रांति शुरू हुई। एनफिल्ड राइफल की गोली विशेष रूप से गाय और सुअर की चमड़ी से बनाए जाते थे।

1857 की क्रांति की शुरुआत

जनवरी, 1857 में यह बात सबसे पहले दमदम (पश्चिम बंगाल) में फैली कि एनफिल्ड राइफल का प्रयोग किया जा रहा है। फ़रवरी में दमदम के बाद बहरामपुर में फैला और 29 मार्च 1857 में बैरकपुर छावनी तक पहुँच गई। 

बैरकपुर छावनी के एक सिपाही "मंगल पाण्डेय" ने दो अंग्रेज़ अधिकारियों को घायल कर दिया (लेफ्टिनेंट बाग और सार्जेंट ह्यूरसन) जिसके बदले में अंग्रेज़ों ने उन्हें 8 अप्रैल को फांसी की सजा सुनाई।

विस्तार

10 मई 1857 को मेरठ (यू.पी) से इस क्रांति की शुरुआत हुई। मेरठ के सिपाहियों ने अपने रेजिमेंट में हमला बोलते हुए सत्रागार को लूट लिया और कैद हुए भारतीय सिपाहियों को छुड़ाकर दिल्ली की ओर आक्रमण किया। 11 मई को वो दिल्ली पहुँचे और 12 मई को उन्होंने दिल्ली अपने हाथ में ले लिया जिसके बाद उन्होंने मुग़ल बादशाह बहादुर शाह द्वितीय का चयन एक नेता के रूप में किया।

लेकिन वास्तविक नेता बख्त खाँ था जो बहादुर शाह द्वितीय का सेनापति था। इस विद्रोह का विस्तार संपूर्ण भारत में नहीं था, केवल उत्तर और उत्तर पूर्व भारत में ही इसका विस्तार था जिसमें कानपुर, पटना, दिल्ली, झांसी, लखनऊ, इलाहाबाद, बरेली तथा बिहार शामिल था।

परिणाम


2 अगस्त 1858 को ब्रिटिश सरकार ने कंपनी के नियम तथा शासन को समाप्त कर दिया और भारत का प्रशासन ब्रिटिश ताज ने अपने अधिकार में ले लिया। इसके अलावा भारत सचिव का एक पद निर्धारित किया गया जिसके अधीन भारत परिषद का निर्माण हुआ।

Post a Comment

और नया पुराने