सनातन धर्म का सबसे बड़ा मंदिर - अंकोरवाट मंदिर 


भारत शुरू से ही एक धार्मिक तथा सांस्कृतिक देश के रूप में जाना जाता रहा है। यहाँ की संस्कृति पूरे विश्व में विख्यात है। हमारे भारत में आज भी ऐसी बहुत सी ऐतिहासिक मंदिरें हैं जिन्हें देखने पर्यटक दूर दूर से आते हैं। लेकिन भारत के सबसे विशाल मंदिर की बात करें तो वो भारत से 4,933 किमी दूर कंबोडिया में स्थित अंकोरवाट नामक मंदिर है जो 402 एकड़ में फैला हुआ है। ये कंबोडिया के अंकोर में स्थित है जिसका पुराना नाम यशोधरपुर था। इस मंदिर का निर्माण खमेर साम्राज्य में हुआ था और ये मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है।

इस मंदिर का निर्माण कंबुज के राजा सूर्यवर्मन द्वितीय के शासनकाल के दौरान प्रारंभ हुआ लेकिन वो इसे पूरा नहीं कर पाए। निर्माण का कार्य उनके उत्तराधिकारी (भांजे) धरणीन्द्रवर्मन के शासनकाल में समाप्त हुआ। फ्रांस से आजादी मिलने के पश्चात् यही मंदिर आगे चलकर कंबोडिया की पहचान बनी। आपको बता दें कि इस मंदिर की तस्वीर कंबोडिया के राष्ट्रध्वज पर बनाई गई है और वही यहाँ की पहचान है।

इस मंदिर के चारों ओर एक खाई का भी निर्माण किया गया था जो 700 फुट गहरा है इसलिए इसको बनाया गया था ताकि आक्रमणकारियों से बचा जा सके और आज भी इसमें भरा हुआ पानी देखने को मिलता है। अंकोरवाट को बनाने में लगभग 47 साल का समय लगा। ये मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में भी शामिल है। मंदिर की दीवारों पर हिंदू धर्म से संबंधित ग्रंथों का भी चित्रण किया गया है। अंकोरवाट मंदिर 1112 ई. में बनना शुरू हुआ और 1153 ई. में बनकर तैयार हुआ।


इस मंदिर के बारे में सबसे रोचक बात ये है कि अंकोरवाट मंदिर में मिस्र के पिरामिडों से भी ज्यादा पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। अंकोरवाट मंदिर मीकांग नदी के किनारे सिमरिप नामक शहर में बना हुआ है। साथ ही मेरू पर्वत का भी प्रतीक है। इस मंदिर में असुर और देवताओं के मध्य समुंद्र मंथन को भी दर्शाया गया है। कुछ विद्वानों का मानना है कि ये मंदिर चोल वंश के मंदिरों से काफी मेल खाता है।

अंकोरवाट मंदिर का संपूर्ण इतिहास

9वीं सदी के आरंभ में जयवर्मा तृतीय कंबुज का राजा बना और उसने अपनी राजधानी अंग्कोरथोम की स्थापना की। जैसा कि हम पहले ही जान चुके हैं कि उस समय अंकोर को यशोधरपुर के नाम से जाना जाता था। उस समय ये दुनिया के महानगरों में से एक था।

मंदिर का निर्माण 1112 ई. में कंबुज के सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय के समय हुआ था लेकिन वो इसे पूरा नहीं कर पाए। सूर्यवर्मन द्वितीय ने इस मंदिर के लिए इतना धन लगा दिया था कि देश गरीबी के कगार पर आ गया था जिसके बाद 1150 ई. से 1181 ई. तक देश में ना किसी मंदिर की स्थापना हुई और ना ही अन्य बड़े कार्य किए गए। अंत में सूर्यवर्मन के उत्तराधिकारी (भांजे) धरणीन्द्रवर्मन के शासनकाल में ये मंदिर बनकर तैयार हुआ।


साल 1431 में सियामी हमले के दौरान कंबोडिया को काफी नुक्सान हुआ। वहाँ की मंदिरें, देवी देवता, शिलालेख आदि खतरे में थे लोग राजधानी छोड़कर जाने लगे। इस हमले के बाद बौद्ध धर्म से जुड़े लोग यहाँ आकर बस गए और मंदिरों का स्वरूप बौद्ध धर्म को समर्पित कर दिया गया। इस हमले के दौरान मंदिर की सुंदरता पहले जैसी नहीं रही और बहुत से मंदिर खंडहर में बदल गए। तकरीबन 27 शासकों ने कंबोडिया पर शासन किया जिनमें से कुछ हिंदू तथा कुछ बौद्ध भी थे।

मंदिर में प्रवेश के लिए एक विशाल द्वार बनाया गया है जो 1,000 फुट चौड़ा है। नगर के मध्य में एक विशाल मंदिर है जिसमें भगवान शिव की मूर्ति स्थापित है। ये मंदिर मुख्य रूप से भारतीय संस्कृति को प्रभावित करती है। ऐसा कहा जाता है कि ये मंदिर एक ही दिन में अद्भुत शक्तियों से बना था। वर्तमान समय की बात करें तो आज के कंबोडिया में 450 स्मारक मौजूद हैं जिन पर केवल सरकार का अधिकार है लेकिन कंबोडिया के राष्ट्रध्वज पर अंकोरवाट मंदिर का ही चित्रण किया गया है।

Post a Comment

और नया पुराने